हरेकृष्णहरेकृष्ण●Paths toward God by faith @-“The Path that is built in hope is more pleasant to the traveler than the Path built in despair, even though they both lead to the same destination.”“आशा के साथ तैयार की गई सड़क या रास्ता या मार्ग पर यात्रा करना उस सड़क या मार्ग पर यात्रा करने से कहीं अधिक आनन्ददायक होता है जिसे निराशा के साथ तैयार किया जाता है चाहे उन दोनो की मंजिल एक ही क्यों न हो" रामरामहरेहर

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Monday, October 12, 2015

@डर है कि कहीं धीमें पड़ गए तो आगे बढ़ने की रेस में पीछे न छूट जाएं। आज कल की जिंदगी में हर कोई यही अनुभव कर रहा है कि दुनिया तेजी से आगे बढ़ रही है, वह दौड़ रही है, इसलिए बस हमें भी दौड़ना है। ... तक जागना और सुबह पांच तक सोना फिर काम की आपाधापी में पड़ जाना और काम इतना कि खुद के लिए भी समय ना मिलना। ... आपको जिंदगी में सुकून चाहिए तो आध्यात्मिकता को अपने दैनिक जीवन के साथ जोड़ें Mrityulok@Scared that have slowed down or it leaves behind in the race to go ahead. In today's life,everyone is feeling that the world is moving fast, he's /she's running, so just we have to run. ... Until five in the morning to wake up and go into the gold rush of the work and work so that not get time for ourselves. ... If you want peace in life with spirituality add to your daily life ...

यदि हमें प्रतिपल नया होने की कला नहीं आती। तो हमें अपने अन्दर प्रतिपल नया जीवन जीने की कला को डिवेलप करना होगा@Every moment we are not new to art. so we must develop the art of living life in a new moment # Krishna Das -Mahamantra Meltdown at Omega  https://youtu.be/L85OsWqVNJ0 

Saturday, October 10, 2015


@'पुराने के साथ एक मुर्दापन और नए के साथ एक जीवंतता लेकिन यह भी विचारें कि ऐसा क्यों होता है"? # हमारे सामान्य जीवन में हम एक ऊब को अनुभव करते हैं और सोचते हैं कि हमें आनंद तब मिलेगा जब कुछ नया होगा। नए के साथ आनंद की कल्पना जुड़ जाती है और पुराने के साथ एक बासीपन, नए के साथ एक जीवंतता और पुराने के साथ एक मुर्दापन। लेकिन यह भी विचारें कि ऐसा क्यों होता है? इस स्थिति की ओर अगर हम आध्यात्मिक ढंग से देखें तो इस प्रश्न का उत्तर है कि हमें प्रतिपल नया होने की कला नहीं आती। हम संसार में यांत्रिकता से जीते हैं, हम आदतों से बंधकर जीते हैं। निश्चित ही जीवन के ये बंधन आनंदमय नहीं हो सकते हैं, देर-सबेर हम इनसे ऊब ही जाएंगे। जो व्यक्ति जितना अधिक संवेदनशील होगा उतना ही जल्दी वह ऊबेगा। फिर कोई नई शुरुआत होगी और जल्दी ही वह एक यांत्रिकता बन जाएगी, बंधन बन जाएगी। जीवन तो बस ऐसा ही है, नया बहुत देर तक नया नहीं रहता है, उसे पुराना अनुभव करने में देर नहीं लगती। असका यह अर्थ है कि हम जीवन के क्रम को नहीं बदल सकते हैं। जीवन सदा अपने क्रम से चलता है, अपनी गति से चलता है और जीवन सदा नया है। जो नया नहीं है वह हमारी भावदशाएं, हमारे चित्त की अवस्थाएं। हमारा चित्त अतीत से बंधा रहता है और इसलिए हमें चीजें पुरानी नजर आती है @With old and new with a dead Hydro vividness But also thinking(vicharen)Why is it that# In our common life we experience a bored and just when we think that will be something new. With new features are added and old with a stale imagine, with new construction with a vibrancy and a Murdapan. But it is also why Vicharen? If you look at the situation if we take this question from the spiritual dimension that moment we are not new to art. We live in a world of mechanisms, we are living habits binding , Certainly, life in these delightful bond can not, sooner or later we will soon get bored with them. The more sensitive the more quickly he will be the person who Ubega. Then a new beginning and soon he will become a mechanism, will become binding. Life is just like that, the new is not new for a long time, it does not take long to feel old. Aska This means that we can not change the order of life. Life always moves your karma, your moves and life is ever new. Our Bavdshaan which is not new, our states of mind. Our mind is bound by the past, and so we have seen the old things 
कर्मलोक@'पुराने के साथ एक मुर्दापन और  नए के साथ एक जीवंतता लेकिन यह भी विचारें कि ऐसा क्यों होता है"? # हमारे सामान्य जीवन में हम एक ऊब को अनुभव करते हैं और सोचते हैं कि हमें आनंद तब मिलेगा जब कुछ नया होगा। नए के साथ आनंद की कल्पना जुड़ जाती है और पुराने के साथ एक बासीपन, नए के साथ एक जीवंतता और पुराने के साथ एक मुर्दापन। लेकिन यह भी विचारें कि ऐसा क्यों होता है? इस स्थिति की ओर अगर हम आध्यात्मिक ढंग से देखें तो इस प्रश्न का उत्तर है कि हमें प्रतिपल नया होने की कला नहीं आती। हम संसार में यांत्रिकता से जीते हैं, हम आदतों से बंधकर जीते हैं। निश्चित ही जीवन के ये बंधन आनंदमय नहीं हो सकते हैं, देर-सबेर हम इनसे ऊब ही जाएंगे। जो व्यक्ति जितना अधिक संवेदनशील होगा उतना ही जल्दी वह ऊबेगा। फिर कोई नई शुरुआत होगी और जल्दी ही वह एक यांत्रिकता बन जाएगी, बंधन बन जाएगी। जीवन तो बस ऐसा ही है, नया बहुत देर तक नया नहीं रहता है, उसे पुराना अनुभव करने में देर नहीं लगती। असका यह अर्थ है कि हम जीवन के क्रम को नहीं बदल सकते हैं। जीवन सदा अपने क्रम से चलता है, अपनी गति से चलता है और जीवन सदा नया है। जो नया नहीं है वह हमारी भावदशाएं, हमारे चित्त की अवस्थाएं। हमारा चित्त अतीत से बंधा रहता है और इसलिए हमें चीजें पुरानी नजर आती है Karmaloka@With old and new with a dead Hydro vividness But also  thinking(vicharen)Why is it that# In our common life we ​​experience a bored and just when we think that will be something new. With new features are added and old with a stale imagine, with new construction with a vibrancy and a Murdapan. But it is also why Vicharen? If you look at the situation if we take this question from the spiritual dimension that moment we are not new to art. We live in a world of mechanisms, we are living habits binding , Certainly, life in these delightful bond can not, sooner or later we will soon get bored with them. The more sensitive the more quickly he will be the person who Ubega. Then a new beginning and soon he will become a mechanism, will become binding. Life is just like that, the new is not new for a long time, it does not take long to feel old. Aska This means that we can not change the order of life. Life always moves your karma, your moves and life is ever new. Our Bavdshaan which is not new, our states of mind. Our mind is bound by the past, and so we have seen the old things